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baba deep singh ji

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आपकों हर जगह कोई अमर या गरीब मिल सकता है; हर जगह कोई बलवान या कमजोर मिल सकता है; हर जगह कोई सुंदर या करूप मिल सकता हैं; लेकिन हर जगह कोई शहीद नहीं मिल सकता जहां किसी को शहीदी मिल  हों; आज हम अमर शहीद बाबा दीप सिंह जी का प्रकाश पर्व मना रहे हैं बचपन और गुरु साहिब से मुलाकात शहीद बाबा दीप सिंह जी का जन्म 20 जनवरी 1682 को अमृतसर जिले के पहुविंड गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम भाई भगटू जी था। 12 साल की उम्र में, बाबा दीप सिंह जी अपने माता-पिता के साथ दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी से मिलने के लिए आनंदपुर साहिब गए। वे कई दिनों तक श्री आनंदपुर साहिब में रहे, संगत के साथ सेवा करते रहे। जब उनके माता-पिता अपने गांव लौटने के लिए तैयार थे, गुरु गोबिंद सिंह जी ने बाबा दीप सिंह जी को अपने साथ रहने के लिए कहा। उन्होंने विनम्रतापूर्वक गुरु जी की आज्ञा स्वीकार कर ली और उनकी सेवा करने लगे। प्रशिक्षण और ज्ञान भाई मणि सिंह जी से बाबा जी ने गुरबाणी पढ़ना और लिखना सीखना शुरू किया। गुरुमुखी के साथ-साथ उन्होंने कई अन्य भाषाएँ भी सीखीं। गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हें घुड़सवारी, शिकार और शास्त्र-विद्या भी सि

Shahidi Saka(Chote Sahibzade) With Poem of Kavi Allah Yar khan Jogi

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जब सरसा नदी से गुरू गोबिंद सिंह जी का संपूर्ण परिवार बिडुड गया। तो माता जी व छोटे साहिबजादें उनके साथ चले गए। बडे साहिबजादें व गुरू जी चमकौर की तरफ हो गए। उस समय के साहिबजादों के भाव को कवि अल्लाह यार खान जोगी ने काफी अच्छा लिखा दादी से बोले अपने सिपाही किधर गए । दरिया पि हम को छोड़ के राही किधर गए । तड़पा के हाय सूरत-ए-माही किधर गए । उन्होने अपनी दादी से कहा कि अपने सिख कहां गए। वह अपने सरसा नदी पर छोड कर कहां चले गए। हमे मछली की तरह तडफा के कहां चले गए। अब्बा के साथ जिस घड़ी जुझार आएंगे । करके गिला हर एक से हम रूठ जाएंगे । माता कभी, पिता कभी भाई मनाएंगे । हमे गले लगा के कहेंगे वुह बार बार । मान जायो लेकिन हम नहीं मानेंगे ज़िनहार । (ज़िनहार=बिल्कुल) पिता जी के साथ जब बड़े भाई जुझार आएगें हम उनसे रूठ जाएगे कि वह हम छोड कर क्यों चले गए। हमे एक—एक करके सभी मनाएगे लेकिन हम किसी से भी नहीं मानेगे। इकरार लेंगे सब से भुलाना ना फिर कभी । बार-ए-दिगर बिछड़ के सताना ना फिर कभी । हम को अकेले छोड़ के जाना ना फिर कभी ।  सिरसा नदी के किनारे युद्ध के दृश्य से दूर चलते हुए, वे गंगू ब्राह्मण नामक अपने पुराने