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Showing posts from October, 2021

Baba Budda ji birth

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waheguru ੴ श्री सतगुरू प्रसादि बाबा बुढ्डा जी जिनका जन्म कॅतक 7 1553 को अमिृतसर शहर के ​गांव गोगेनगर जिसे अब कथुनगर कहा जाता है, में पिता सुखा​ सिंह रंधावा के घर हुआ। उनके माता—पिता जी काफी धार्मिक प्रवत्ति वाले थे जिसके कारण उन्हें बाबा जी जैसी धार्मिक स्ंतान का आगमन उनके घर में हुआ। बाद में वह एक भैंसों को चराने वाले बन गए। गुरू नानक देव जी से ​मुलाकात— एक बार गुरू नानक देव जी ने अपने सिखों को कहा कि यहां से कुछ दुरी पर एक बालक बकरियां चरा रहा हैं। उसे हमारे पास लेकर आओ। गुरू जी का आदेशपाकर वह उसे लेने चले गए। उस बालक ने आकर गुरू जी को प्रणाम किया। गुरू जी ने उससे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या हैं। उसने उत्तर दिया कि गुरू जी मेरे माता—पिता ने मेरा नाम बूड़ा रखा हैं। गुरू जी ने उससे कुछ सवाल किये और उसके बाद उसे वापिस भेज दिया।अगले दिन वहीं बालक सुबह अमिृतवेले 3—4 बजे गुरू जी के पास आया। उसने गुरू जी को प्रणाम किया और कहा कि गुरू जी आज मैं आपके लिए मखन्न लेकर आया हूं। गुरू जी ने उससे पूछा कि क्या तुम यह मखन्न चुरा कर तो नहीं लाए, कि कहीं तुम्हारे माता—पिता तुम्हे बाद में हमारे कारण डांटे।

Balmiki Birthday

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waheguru त्रेता के युग में और हिंदू देवता, रामचंदर के समय, एक ऋषि का जन्म हुआ था। उस समय मानव प्रजाति का बहुत बड़ा विकास नहीं हुआ था लेकिन यह स्तनधारियों और जानवरों का राज्य था। कई ऋषि जंगलों में रहते थे और जो लोग विभिन्न मंत्रों का प्रदर्शन करते थे। एक दिन कुछ महान वेद-मंत्र पाठक, ऋषि कशुप, अत्रि भारद्वाज, वशिष्ठ, गोतम और विश्व मितार एक धार्मिक भोज में शामिल होने गए। रास्ते में वे मध्य भारत के एक जनजाति के सदस्य से मिले, जिसके हाथ में कुल्हाड़ी थी। वह बहुत बड़ा था; उसकी बड़ी गोल आँखें, मोटे होंठ और बहुत ही गहरे रंग का था। उसका नाम वाल्मीकि था। वह जोर से गरजकर बोला, "रुको! आगे मत बढ़ो!" ऋषि रुक गया। वे लड़ने में सक्षम थे, क्योंकि वे महान योद्धा थे, लेकिन वे ऐसा नहीं करना चाहते थे। गौतम ने पूछा, "क्यों?" वालमिकी: "जो कुछ भी तुम्हारे पास है, उसे यहीं छोड़ दो। अगर तुम ऐसा करने से इनकार करते हो, तो मैं तुम सभी को मार डालूँगा!" गोतम: "आपको क्या लगता है कि हमारे पास क्या है? हमारे पास एक भीख का कटोरा, एक हिरण की खाल और एक लंगोटी है ... इन चीजों का कोई मूल्य नहीं ह

अगर किसी सत्य से किसी का नुक्सान हो तो वह नहीं बोलना चाहिए।-Sodhi Sultan Shri Guru Ramdas Ji

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waheguru गुरू रामदास जी जिनका प्रकाश पर्व आने वाली 23 अक्टूबर को न केवल भारत मे बल्कि विश्वभर मेंं अनेक गुरूनानक नाम लेवा संगत बना रही हैं। अगर हम किसी का जन्मदिवस पर काफी धुमधाम से बनाए लेकिन जिसका जन्मदिन है उसकों ही न सुनें तो वह बेकार ही होगा। एक समय गुरू रामदास जी ने अपने सिखों को एक कहानी सुनाई जिसमें उन्होनें यह बताया कि अगर किसी सत्य से किसी का नुक्सान हो तो वह नहीं बोलना चाहिए। किसी समय एक राजा के महल के सामने एक ऋिषी रहते थें जो कभी—कभी महल मे भी आते—जाते रहते थें। राजा का एक पुत्र था जिसकी शादी कुछ दिन पहले ही हुई थी। एक दिन उसके पुत्र की पत्नी को रात को नींद नहीं आ रही थी, उसके पास एक बहुत सुंदर कटार पड़ी थी। उसने वह कटार उठा ली। लेकिन अचानक ही उसके हाथ से कटार छूट गई व उसके पुत्र के पेट में लग गई। और उसकी उसी क्षण मौत हो गई। सजा के भय व अपमान से बचने के लिए उसकी रानी ने इस लापरवाही के लिए उस साधु को दोषी बना दिया। जो उनके महल के सामने रहता था। उसने तर्क दिया कि रात को वह साधु उनके पास आया और उसके पति की हत्या कर दी। राजा के एकमात्र पुत्र की हत्या ने उसे काफी व्याकुल कर द

Dussara Mahatam

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ੴ श्री सतगुरू प्रसादि  गुरू गोंबिद सिंह जी ने खालसा पंथ बनाया तो उन्होने बहुत सारे पुराने त्योहारों का रूप बदलकर इसमें शामिल किया। भारत में पहले समय में लोग होली मनाते थें तो गुरू जी ने कहा कि हमारे सिख एक—दुसरे पर रंग डालकर होली नहीं बनाएगें बल्कि होला मोहल्ला बनाएगे। इसी तरह गुरू जी ने अन्य कई त्योहारों का रूप बदल दिया। दशहरा भी भारत में कई तरह से बनाया जाता हैं वैश्णों लोग, अधिकतर लोग सोचते है कि वैष्णों वह होता है जो मास, अंडा नहीं खाते हैं बल्कि वैष्णों वह होता है जो विष्णु का मानता हैं। दशहरें से पहले 9 दिन जिसमें नवरात्रि आती है उन दिनों वह हर रोज भगवान रामचंद्र जी का जीवन नाटकरूप में प्रस्तुत करते है जिससे रामलीला कहते हैं। इसमें कोई राम बन जाता है, कोई लक्ष्मण तो कोई मेघनाद इसी तरह होता हैं। और जो दुसरें लोग होता है जो देवी की अर्चना करते है वह नौ दिन तक रोज रात को जागरण करते हैं। पर गुरू जी ने इन दोनों तरह के लोगों द्वारा दशहरे के मनाए जाने का भाव एकत्र कर गुरू जी ने अपने सिखों को दशहरे मनाने का हुक्म दिया। दशहरे से पहले दो महीने खुब बारिश होती है जिसे कारण शस्त्रों पर भी पान

Sahidi Bhai SukhDev Singh Sukha & Bhai Harjinder Singh Jinda

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Shahid Bhai Taru Singh Ji

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वैसे तो हर रोज किसी—न किसी का शहीदी दिवस होता हैं। लेकिन बहुत ही कम होते है जो अपने धर्म—देश के लिए कई यताना सहन करके भी अपने—आप को नही बदलतेंं। आज भाई तारू सिंह जी का शहीदी दिवस है जिन्होने अपने धर्म को बचाने के लिए अपने सिर के मास को उतारना स्वीकार कर लिया; लेकिन अपना धर्म तोड़ने के लिए बाल कटवाने स्वीकार नही किए।  जीवन भाई तारू सिंह , (6 अक्टूबर 1720 [1] - 1 जुलाई 1745), पंजाब के अमृतसर जिले के पूहला गांव के शहीद भाई जोध सिंह और संधू जाट परिवार की बीबी धरम कौर के बेटे थें। उनकी एक छोटी बहन थी जिसका नाम बीबी तर कौर था। वह एक सच्चे गुरूमुख थे, जिन्होंने सिख गुरुओं की शिक्षाओं का पालन करते हुए , अपनी भूमि को परिश्रम से जोतने के लिए कड़ी मेहनत की और मितव्ययी जीवन व्यतीत किया; हालांकि वह एक अमीर नहीं थेंं, वह हमेशा गुरूबाणी के सिद्धातों को पालन करने के कारण खुश रहते थें। भाई तारू सिंह अपने धर्म के प्रति इतने ईमानदार थे कि रोजाना सुबह 21 बार जपुजी साहिब का पाठ करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते थे उन्हे जो कुछ भी अपनी अजीविका से मिलता था उसे वह अपने सिख भाईओंं की सेवा में लगा