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Showing posts from November, 2021

साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह

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साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह सिख इतिहास में एक चमकते सितारे की तरह हैं। उनका जन्म 15 मगहर (30 नवंबर 1696) को श्री आनंदपुर साहिब, दशम पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और माता जीतो जी के घर में हुआ था। इतिहास के अनुसार, जब गुरु के दो छोटे बेटे, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह, अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ, सिरसा के किनारे चलते हुए, उसे पार करने का कोई प्रयास किए बिना, भटक गए। सिरसा नदी के किनारे युद्ध के दृश्य से दूर चलते हुए, वे गंगू ब्राह्मण नामक अपने पुराने नौकर से मिले, जिन्होंने लगभग 20 वर्षों तक उनके घर में काम किया था। उसके अनुरोध पर, माता गुजरी, उनके दो पोते के साथ, गंगू के साथ उनके गांव जाने और कुछ समय के लिए उनके स्थान पर रहने के लिए सहमत हुए। इतिहासकारों के अनुसार जब उसने माता गुजरी जी के पास बड़ी मात्रा में नकदी और अन्य कीमती सामान देखा तो वह बेईमान हो गया। उसी समय, उन्हें पुरस्कार और प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए गुरु जी के परिवार को सरहिंद प्रांत में ले जाने का लालच था। गंगू द्वारा प्रदान की गई इस महत्वपूर्ण सूचना से पुलिस अधिकारी अत्यंत प्रसन्न हुए। माता जी को उनक

Bandi Chod Diwas! || Diwali|| Shri Guru Hargobind Sahib Ji

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दिपावली एक ऐसा त्योहार जिसे समाज के हर वर्ग किसी-न किसी रूप से हर साल बड़ी धुम-धाम से बनाते हैं। इसी दिन श्री गुरू हरगोबिंद साहिब जी ग्वालियर के किल से 52 कैदियों को  जो कई सालों से कैद मेंं थें, जिनके बारे में यह विचार थी कि उस जेल से इन राजाओं को जिंदा लाने की बात तो दुर की है उनकों दफना भी वही दिया जाता था, ऐसे राजाओं को जिनको जहांगीर ने कैद किया हुआ था, उनकों श्री गुरू हरगोबिंद साहिब जी मुक्त करवाकर दिपावली वालें दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को हरमदिंर साहिब पहुंचें थे तो वहां पर संगतों ने उनका घी के दीए जलाकर स्वागत किया। तब से यह त्योहार का नाम बंदी छोड दिवस भी पड गया। इसी को लेकर एक कहावत भी प्रसिद्धि है कि दाल-रोटी घर की, दिवाली अमिृतसर की,।। विस्तृत इतिहास चंदू की चाल गुरू हरगोबिंद साहिब जी से, तुर्क बादशाह जहांगीर का दिवान चंदू जो काफी नफरत करता था, क्योंकि उनके पिता जी गुरू अर्जुन देव जी ने उसकी लड़की का रिश्ता गुरू हरगोबिंद साहिब जी से करवाना स्वीकार नहीं किया। इसी कारण से वह उनसे मन ही मन में काफी ईर्ष्या की आग में जलता रहता था एक दिन उसने एक ज्योतिष को काफी धन देकर कह

खालसे की माता साहिब देवा जी

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माता साहिब देवा जी   (  1 नवंबर  1681  -  1708  ), जिसे आमतौर पर माता साहिब कौर के नाम से जाना जाता है, को "  खालसा  की माँ" के रूप में जाना जाता है  ।  उन्होंने पहले  अमृत  को उस मिठास  से भरकर गौरव अर्जित किया जो  इसकी उग्रता को संतुलित करती है।  'साहिब देवन' कहलाने वाली माता साहिब कौर  खालसा  की माता थीं  ।  माता साहिब कौर जी जीवन भर गुरु साहिब के साथ रहीं। माता साहिब देवन के पिता की इच्छा थी कि उनकी बेटी  गुरु गोबिंद सिंह  से शादी करे  , हालाँकि गुरु पहले से ही शादीशुदा थे, इसलिए उनके पिता ने माता साहिब देवन को गुरु के घर में सिख के रूप में रहने और गुरु और उनके परिवार की सेवा करने की अनुमति मांगी।   गुरु गोबिंद सिंह ने  गुरु का लाहौर में  माता साहिब देवन  से  शादी की  लेकिन गुरु के साथ कभी शारीरिक संबंध नहीं बनाए।  परिणामस्वरूप, गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें "खालसा की माँ" बना दिया।  इतिहास में आज तक, अमृत लेने वाले सभी सिख माता साहिब कौर को अपनी (आध्यात्मिक) माता मानते हैं, और गुरु गोबिंद सिंह जी को अपना (आध्यात्मिक) पिता मानते हैं। माता साहिब कौर जी, जिन्