बाबा श्री चंद जी श्री गुरू नानक देव जी के प्रथम साहिबजादें


बाबा श्री चंद जी श्री गुरू नानक देव जी के प्रथम साहिबजादें व ब्रहमगिआनी में से सबसे महान ब्रहमगिआनी। कुछ लोग अक्सर बाबा जी के बारें में कुछ गलत बाते करते है लेकिन जैसे सूरज के सामने जिनते भी बादल आ जाए कुछ समय बाद सूरज का प्रकाश से वह दुर हो ही जाते हैं। इसी तरह बाबा जी के बारे में जो गलत विचारधाराएं हैं वह भी एक दिन खत्म हो जाएगी। हम गुरूद्वारों, मंदिर जाते हैं ताकि हमारा ध्यान इस संसार से हटकर सुरति ईश्वर में लगेगे। लेकिन अगर हम वहां जाकर भी संसार की ही बात करेगे तो वहां जाने का फायदा।
एक दिन श्री गुरू नानक देव जी सहजे ही अपनी बहन नानकी जी  के पास उनके घर आए। नानकी जी जान गए कि गुरू जी वास्तव में तो कभी भी बिना बुलाए नही आते आज आए है नहीं तो गुरू जी को पहले बुलाना पड़ता था। तो जरूर कोई-न कोई बख्शीश मिलेगी।
उनकों गुरू जी ने कहा कि हम तो तुम्हारे दास ही हैं। बस दुनिया के कामों से व्यस्त थें। बीबी नानकी जी ने कहा कि गुरू जी आप सारे संसार को यह बताना कि आप व्यस्त थें लेकिन सत्य मे तो आप सबको इस संसार से, मोह से दुर करने के लिए आए हैं। गुरू जी को उन्होने कहा कि मेरे मन में एक इच्छा है अगर आपकी आज्ञा हो तो कहे हम। गुरू जी ने कहा  कि  आपका जन्म हमसे पहले हुआ है और हमे आपकी आज्ञा माननी चाहिए। बताओं तुम्हे क्या चाहिए।
विद्वान कहते है जो हमसे उम्र मे सिर्फ एक दिन भी बड़ा हो हमे उसकी भी बात माननी चाहिए। उसे हमसे पहले इस संसार में ज्ञान हुआ हैं। और गुरू जी ने स्वयं ईश्वर होकर यह बात कह रहे है और हमारा क्या
उन्होने कहा कि तुम्हारा विवाह बहुत अच्छी गुणों वाली ,अच्छे खानदान वाली लड़की बीबी सुलखनी जी से हुआ हैं। उसके माता-पिता जब भी आते है वह हमें ही बुरे बोल बोल कर  चले जाते हैं। आप उनसे कुछ बोलते ही नहीं हैं।
गुरू जी ने कहा कि बताओं कि उन्हे पास किस क्या किसी वस्तु की कमी हैं। हर चीज जो भी उन्हें चाहिए होती हे उन्हे दे दी जाती हैं। बीबी जी ने कहा आप उनसे कुछ मीठे बोल भी तो बोल सकते हो। उनका हाल चाल पूछ सकते हों उनसे किसी भी विषय पर बात कर सकते हों। वास्तव में गुरू जी ने गृहस्थ जीवन की तरफ कभी भी ध्यान नही दिया।
अगर हमारे पास वस्तुओं की कमी है हमारे पास कोई आता है और हम उसे केवल मीेठे बोल ही बोल दे तो वह इस पर भी काफी खुश हो जाएगा। हम किसी पर जाते है तो इसका कारण कोई खाना-पीना नही होता बस दो मीठे बोल ही होते हैं।
गुरू जी ने कहा चलो ठीक हैं। अब आप और कोई विषय पर आओं। बीबी नानकी जी ने कहा कि मेरी बहुत इच्छा है कि मैं अपने भत्तीजें को अपनी गोद में खिलाऊ। गुरू जी ने कहा तुम ईश्वर की बहुत बड़ी भक्ति हो। तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी होगी। और गुरू जी चले गए। उसके बाद से गुरू जी रात्रि के समय घर आने लगें नही तो पहले गुरू जी कभी कभी ही घर आते थें। कुछ समय बाद उनके घर पर बाबा श्री चंद जी का जन्म हुआ।
लेकिन गुरू नानक देव जी के समय तक आप उन्हें पहचान नहीं सकें। और हमेशा उन्हें एक पिता ही मानते थें। जब गुरू नानक देव जी शरीर छोड कर परलोक जा रहें थें तब भी वह उनके पास नहीं आए। लेकिन जब उन्होने शरीर छोड दिया तब आप और बाबा लखमी चंद जी ने ईश्वर से प्रार्थना की कि उनके पिता को 2 घड़ियों के लिए उनके पास भेज दो। और फिर ईश्वर ने उनकी अरदास पर गुरू जी फिर वापिस 2 घड़ियों (1 घडी में 24 मिनट )के लिए भेज दिया। फिर बाबा श्री चंद जी ने उनसे माफी भी मांगी। गुरू जी ने उन्हें वर दिया कि वह जो भी कहेगें सच हो जाएगा और बेअंत शक्तियां भी दी।
बाबा श्री चंद जी ने सारी उम्र बिना गृहस्थ के जी। एक दिन जांहरगीर ने पीर सांई मीयां से पूछा कि क्या आपकी नजर है कोई हैं जो ईश्वर से जुड़ा हों। उन्होने कहा कि इस समय तो केवल गुरू नानक देव जी के नंदन बाबा श्री चंद जी ब्रहमगिआनी हैं। उन्होने आपकों अपने पास लाने के लिए कई साथियों सहित एक हाथी भेजा।
बाबा जी अक्सर एक कंबली लेते थे बाबा जी ने कहा कि हमारी कंबली को पहले हाथी पर रख आओं। जैसे ही उन्होने उस कंबली को हाथी पर रखा। तो हाथी को लगा जैसे कि उनकें उपर किसी ने तीनों लोकों का भार रख दिया हैं। और वह नीचे धंसने लगा। बाबा जी ने उन्हे कहा कि तुम्हारा कट्टा तो हमारी कंबली नही सहन कर सका। वह हमे कैसे ले जाएगा।
बाबा जी ने कहा कि हम अपने साथी के पीठ पर चढ़कर जाएगें। जब बाबा श्री चंद जी जहांगीर के दरबार में आए तो उसने उनका काफी स्वागत किया और उसने उनसे बात करनी शुरू की। बाबा जी ने एक कंबली ले रखी दी जो उन्होने उसके सामने रख दी। वह कंबली कभी अपने आप ही उठती, सिकुड जाती; जैसे कोई उसमें हों। जहांगीर ने कहा कि बाबा जी यह क्या है।
​​उन्होने कहा कि कंबली में जो भी है वह इनके पास आ जाए। कुछ देर बार जहांगीर को भी वह चिमड गया। वह अपने आसन से ही नीचे गिर गया। और कांपना शुरू कर दिया। उसने श्रीचंद जी को कहा कि इसे हटाओं। बाबा जी ने कहा ​कि 10 मिनट तो रूक जा। लेकिन उसने कहा कि इसे अभी हटाओं।
उसने बाबा जी से पूछा कि यह क्या था। बाबा जी ने कहा कि हमें तईया ताप हो रखा था लेकिन तुमने इसके बावजुद भी हमें अपने पास बुलाया फिर हमने बात करने के लिए उसे इस कंबली में भेज दिया। उसने फिर कहा कि यह तईया ताप आप इसे दुर भी कर सकते हों, किसी और को भी दे सकते हों फिर इसे हमेशा के लि ही अपने से दुर कर दों।
बाबा जी ने कहा कि हम नही कर सकतें। यह ईश्वर के भाणे में हैं। हमारे इतनी हिम्मत नहीं है कि हम इसे दुर करें। जहांगीर को समझ आ गया। और उसे यह भी महसूस हुआ कि गुरू अरजन देव जी को शहीद करवारकर उसने अच्छा नहीं किया।
बाबा जी फिर वहां से चले गए और उन्होने अपनी गदृी गुरू हरगोंंबिंद साहिब जी के पुत्र बाबा गुरादित्ता जी को दे दी।

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