Bandi Chod Diwas! || Diwali|| Shri Guru Hargobind Sahib Ji

दिपावली एक ऐसा त्योहार जिसे समाज के हर वर्ग किसी-न किसी रूप से हर साल बड़ी धुम-धाम से बनाते हैं। इसी दिन श्री गुरू हरगोबिंद साहिब जी ग्वालियर के किल से 52 कैदियों को  जो कई सालों से कैद मेंं थें, जिनके बारे में यह विचार थी कि उस जेल से इन राजाओं को जिंदा लाने की बात तो दुर की है उनकों दफना भी वही दिया जाता था, ऐसे राजाओं को जिनको जहांगीर ने कैद किया हुआ था, उनकों श्री गुरू हरगोबिंद साहिब जी मुक्त करवाकर दिपावली वालें दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को हरमदिंर साहिब पहुंचें थे तो वहां पर संगतों ने उनका घी के दीए जलाकर स्वागत किया। तब से यह त्योहार का नाम बंदी छोड दिवस भी पड गया। इसी को लेकर एक कहावत भी प्रसिद्धि है कि दाल-रोटी घर की, दिवाली अमिृतसर की,।।

विस्तृत इतिहास

चंदू की चाल

गुरू हरगोबिंद साहिब जी से, तुर्क बादशाह जहांगीर का दिवान चंदू जो काफी नफरत करता था, क्योंकि उनके पिता जी गुरू अर्जुन देव जी ने उसकी लड़की का रिश्ता गुरू हरगोबिंद साहिब जी से करवाना स्वीकार नहीं किया। इसी कारण से वह उनसे मन ही मन में काफी ईर्ष्या की आग में जलता रहता था एक दिन उसने एक ज्योतिष को काफी धन देकर कहा कि वह बादशाह जहांगीर को कहे कि उसको साढ़ेसाती आ रही है और इससे बचने को सिर्फ एक ही तरीका है कि वह किसी हरगोबिंद नाम के व्यक्ति को कहे कि वह ग्वालियर के किले में रहकर उसके लिए बंदगी करे, इससे ही वह बच पाएगा।

गुरू जी ग्वालियर क्यों गए??

तब बादशाह जहांगीर ने गुरू हरगोबिंद साहिब जी को कहा कि वह उसके लिए कुछ समय ग्वालियर के किले में जाकर बंदगी करें। गुरू जी चाहते थे वह न भी कर सकते थें लेकिन उन्हें पता था कि वहां पर 52 राजाओं को जहांगीर ने बंदी बनाया हुआ है उनके कारण वह भी छुट जाएगे। इसी कारणवश गुरू जी ने वहां जाना तय किया।
वहां पर जाकर गुरू जी के लिए, वहां का जो दरोगा था उसने काफी पकवान बनवाए, जो न सिर्फ गुरू जी को मिले बल्कि वहां के राजाओं को भी दिए गए। इसी तरह वहां पर वहां के दरोगें ने गुरू जी का काफी सत्कार किया जब तक वह वहां थें।
जब काफी दिन बीत गए तो गुरू जी की माता जी ने बाबा बुड्ढा जी को कहा कि वह किसी भी तरह से उनके पुत्र श्री गुरू हरगोबिंद साहिब जी को उस कैद से मुक्त करवाए। फिर उन्होंने बादशाह को गुरू जी की याद दिलवाई तो उसने गुरू जी को जेल से आने का निवेदन भेजा। लेकिन जब गुरू जी वहां से जा रहे थें तो वहां के राजाओं ने गुरू जी से प्रार्थना की है यम की पीड़ा को भी दुर करने वाले, दीन दुनी के ठाकुर,जब से वह यहां पर आए है तब से उनका हर रोज काफी सत्कार हो रहा हैं। लेकिन अगर वह चले जाएगे तो उनकी कोई भी सुध नहीं लेगा, आप तो कहते हो कि जो भी आतुर होकर एक बार यह कह दे कि हे, हरगोबिंद मै सारे आसरे छोड़कर तेरी शरण में आया हूं। तो आप उसे यहां के दुखों से तो दुर की बात है परलोक के दुख, यम को भी नजदीक नहीं आने देतें। आप हमे छोड कर मत जाओं। गुरू जी ने उन राजाओं को बेनती सुनकर कहा कि तुम चिंता मत करों, हम यहां से तुम्हे लेकर ही जाएगें। तब गुरू जी ने बादशाह को संदेश भेजा कि वह तब तक यहां से नहीं जाएगे जब तक कि वह इन राजाओं को भी मुक्ति न दें।

गुरु जी का नाम बंदी छोड़ दाता क्यों पड़ा??

बादशाह यह सुनकर काफी हैरान हुआ और चिंता में पड़ गया। जिन राजाओं को छुड़ाने के लिए उसने काफी धन गवा दिए, सैनिक गवां दिए, उनकों वह कैसे छोड़ दें तब उसने एक युक्ति लगाई। उसने गुरू जी को कहा कि वह उनका काफी सम्मान करता है वह सारे राजाओं को तो मुक्ति नही करना चाहता लेकिन अगर कोई राजा आपके चोले को पकड़ बाहर आ जाए तो वह उन्हें आने देगा। इस पर गुरू जी  ने 52 कलियां वाला चोला पहना और सभी राजे एक—एक कली पकड़ गुरू जी के साथ बाहर आ गए। जब गुरू जी ने अमृतसर पहुंचे तो संगतो ने गुरू जी के आगमन पर घी के दीए जलाए। तभी से इस त्योहार का नाम बंदी छोड दिवस भी पड़ गया।

Comments

Popular posts from this blog

Shahidi Saka(Chote Sahibzade) With Poem of Kavi Allah Yar khan Jogi

Shri Guru Angad Dev JI

बाबा श्री चंद जी श्री गुरू नानक देव जी के प्रथम साहिबजादें