Guru Nanak Biography In Small Word, Death
ੴ श्री सतगुरू प्रसादि
ऐसा कोई हिंदु धर्म का नहीं है जिसें मुसलमान भी पसंद करते हों, मुसलमान धर्म मे भी कोई ऐसा नहीं है जिसे हिंदु भी पसंद करते हों। लेकिन गुरू नानक देव जी जिन्हें न केवल हिंदु उनके सिख है बल्कि मुसलमान व अन्य धर्म के लोग भी उनके अनुयायी हैं।जब गुरू जी का जन्म हुआ था तो उनके पिता महिता कालू जी ने पंडित को कहा था कि वह हमारे पुत्र का वह नाम रखा जो न तो हिंदुओं को पसंद हो बल्कि मुसलमानों व अन्य को भी पसंद हों। इसलिए उन्होने गुरू जी का नाम नानक रखा।
गुरु जी का नाम
नानक शब्द के बहुत सारे विद्वानो ने अर्थ किए। नानक — न, अनक जिसके समान दुसरे न हों। एक प्रसिद्ध विद्वान का कथन है कि गुरू नानक देव जी से उनके समय में 3 करोड़ लोग मिले और जितने भी उन्हे मिले वह सभी ही उनके सिख बन गए।
गुरू नानक देव जी ने चारों उदासीयां करने के बाद करतारपुर साहिब में आकर रहने लग गए। जहां पर उन्होने अनेकों अज्ञान, अन्याय, व धर्म से दुर हुए व्यक्तिों को ईश्वर से जोड़ा।
अंतिम समय
एक दिन करतारपुर साहिब में तीन व्यक्ति आए और उन्होने गुरू जी से मिलने की इच्छा व्यक्त की। गुरू जी को जब पता चला कि कोई उनसे मिलने आया है तो गुरू जी वैसे तो किसी को अपने साथ ले जाते थे जब किसी से मिलने जाते थे लेकिन उस समय गुरू जी अकेले ही चले गए। वास्तव में वह त्रिदेव थें। उन्होने गुरू जी को प्रेम सहित प्रणाम किया उन्होने कहा कि हमें अकाल पुरख वाहेगुरू जी ने यहां भेजा हैं। उनका हुक्म है कि आपको जिस कार्य के लिए भेजा गया था वह पुरा हो चुका हैं अब आप सचखंड आ जाओं। गुरू जी ने परमेश्वर के हुक्म को मानते हुए उन्हे कहा कि वह कुछ दिनों बाद अपने आप ही वापिस आ जाए।
संगतों का आगमन
गुरू जी ने फिर सिखों को कहा कि वह एक ऐसा स्थान ढूंढे जो काफी बड़ा हों और गुरू जी ने संगतों में यह प्रकट कर दिया कि उन्होने अब सचखंड जाना है। और हमारे बाद गुरू अंगद देव जी गुरू होगें। जिससे सारी संगत काफी उदास हो गई। दुर—दुर तक गुरू जी के जाने की बात फैल गई। बहुत जल्दी ही करतारपुर साहिब दरबार साहिब (वह स्थान जहां से गुरू जी सचखंड गए थे )वहां पर संगत आनी शुरू हो गईं। जैसे गुरू गोबिंद सिंह जी लिखते हैं कि ''नानक अंगद को बपु धरा।। धरम प्रचुर इह जग मों कहा''
उपदेश
गुरू जी ने संगतों को कहा कि कोई भी मत रोए, जहां पर पहाड़ होते है एक समय आता है कि उसी स्थान पर खाईयां बन जाती हैं, जहां पानी होता है; समय पाकर वहां सुखा हो जाता हैं। हर चीज समय के अनुसार बदल जाती हैं। और जिसका जन्म हुआ था उसकी मृत्यु भी हो जाती है। गुरू जी ने कहा कि अब से हमारी ज्योत गुरू अंगद देव में चली जाएगी। और आपकों विलाप की भी जरूरत नहीं हैं।
गुरू जी ने अपने कुछ सिखों को कहा कि वह अपने पुत्रो को कहे कि वह अपने पिता से मिल लें नहीं तो वह सचखंड चले जाएगे। लेकिन उन्होने यह कह कर मना करदिया कि पिता जी ने अपने मुत्यु के बारे में कैसे भविष्यवाणी कर सकते हैं। उन्होने कही नहीं जाना। जब गुरू जी को यह पता चला तो उन्होने इस बारे में कुछ नहीं कहा।
गुरु जी के श्राद्ध को लेकर विचार
गुरू नानक देव जी जब शरीर छोड़ने वाले थे तब माता सुलखनी जी ने गुरू जी को कहा कि अगले दिन पिता महिता कालू जी का श्राद्ध है अगर आप आज शरीर त्याग दोगें तो हम कल पिता जी का श्राद्ध नहीं बना पाएगें। फिर गुरू जी ने कहा कि अब हम आज नहीं दो दिन बाद सचखंड जाएगें।
गुरू जी ने संगतों को आदेश दिया कि वह काफी सारे पकवान बनाए,और अगले दिन गुरू जी ने काफी बड़ा लंगर किया जिसमें काफी पदार्थ बनाए गए।
पर क्या गुरू जी को सत्य में अपने पितृों को भोजन कराने की जरूरत थी। गुरू जी ने वहां पर संगतों को उपदेश दिया था कि केवल उनके पितृ ही रज सकते है जिन्होने सारी उम्र नाम जपा लेकिन जिसने कभी भी बंदगी ही नहीं करी उसके पितृ कभी भी नहीं रज सकतें।
गुरू जी ने उस दिन काफी बड़ा भोज भी किया लेकिन उसका मुख्य कारण था कि वह यह बताना चाहते थे कि लंगर कराना बहुत अच्छा कार्य है जो किसी भी अवसर पर किया जा सकता हैं। लेकिन इससे पितृ तृप्त नहीं हो सकतें। तृप्ति के लिए ईश्वर को याद करना ही पड़ेगा।
फिर गुरू जी ने अशु महीने की 16 तिथि को सचखंड चले गए। गुरू जी का शरीर कमरे में था। जब बाबा श्रीचंद जी व लखमी चंद को पता चला कि पिता जी सत्य में सचखंड चले गए। और फिर वह उस स्थान पर आए जहां से गुरू जी सचखंड गए थें उन्होने ईश्वर ने अरदास की कि गुरू जी को वह पहचान नहीं सकें, अब हमे अपनी गलती अनुभव हो रही हैं। आप उन्हे केवल कुछ समय के लिए ही सही लेकिन वापिस भेज दों।
पुत्रो को वरदान
उनकी अरदास से प्रसन्न होकर ईश्वर ने गुरू जी को फिर वापिस 2 घड़ियों (1 घडी में 24 मिनट )के लिए भेज दिया। गुरू जी ने कहा कि अगर आज तुम ईश्वर से यह मांग लेते कि हमारे पिता जी को एक साल के लिए वापिस भेज दो तो वह इसको भी स्वीकार कर लेते। फिर बाबा श्री चंद जी ने उनसे माफी भी मांगी। बाबा श्रीचंद जी ने गुरू जी को कहा कि आपने सारे संसार को बहुत कुछ दिया कुछ हमे भी दे दों। तब गुरू जी ने उन्हें वर दिया कि वह जो भी कहेगें सच हो जाएगा और बेअंत शक्तियां भी दी। और उसके बाद गुरू जी एक कमरें में गए और संगतो को कहा कि वह कुछ समय बाद अंदर आना। गुरू जी ने जपुजी साहिब का पाठ किया व सचखंड चले गए।
कुछ समय बाद वहां एक हथियारबंद मुसलमानों का समूह आ गया जो गुरू जी क दर्शन करना चाहता था। लेकिन गुरू जी तो सचखंड चले गए। तो उन्होने निर्णय लिया कि वह गुरू जी के शरीर का संस्कार मुस्लिम धर्म के अनुसार करेंगे। लेकिन वहां पर कुछ हिंदु भी थे उन्होने कहा कि नहीं वह गुरू जी के स्वरूप का संस्कार हिंदु धर्म के अनुसार ही करेंगे। पहले तो उनमे बहस हुई लेकिन उनकी बहस बढ़कर झगड़े तक पहुंच गई। बाबा बुड्डा जी व अन्य समझदार सिखों ने रोकने की कोशिश भी की। फिर उन्होने जब कमरे मे गए तो वहां पर बस एक गुरू जी की चादर ही पड़ी थी गुरू जी शरीर सहित सचखंड गए थें। बाबा बुड्डा जी ने कहा कि गुरू जी तो पहले ही तुम्हारे झगड़े को दुर करगें गए हैं।
अंत में उन्होने उस चादर के दो—दो हिस्से किए व मुसलमानों ने एक हिस्से लेकर गुरू जी का संस्कार किया व हिंदुयों ने दुसरा हिस्सा लेकर संस्कार किया।
#GuruNanak
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