सोढ़ी सुल्तान श्री गुरू रामदास जी Guru Ramdas JI Amritsar

 


सोढ़ी सुल्तान श्री गुरू रामदास जी  Guru Ramdas JI Amritsar
सोढ़ी सुल्तान श्री गुरू रामदास जी  Guru Ramdas JI Amritsar

श्री गुरू रामदास जी

अगर आपसे पूछा जाए कि भारत में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध स्थान कौन-सा है तो कोई कहेगा कि ताज महल तो कोई वाराणसी लेकिन जब हरमंदिर साहिब के बारे में बात होगी तब हर कोई चुप रह जाएगा। लेकिन क्या हर किसी को बता है कि यह स्थान किसने बनवाया। यह स्थान सोढ़ी सुल्तान श्री गुरू रामदास जी द्वारा 1577 ईसवी में बनवाया गया। हरमंदिर साहिब इसलिए नही प्रसिद्धि कि वहां पर सोना लगा है क्योंकि यदि ऐसा होता तो वह केवल एकमात्र स्थान होता जों इतना प्रसिद्धि होता। उसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण है 24 घंटे होने वाला बाणी का कीर्तन। 


प्रकाश

श्री गुरू रामदास जी जिनका प्रकाश  कार्तिक वदी 2, विक्रमी संवत1591 (24 सितंबर सन्1534) को पिता हरदासजी के घर माता दयाजी की कोख से लाहौर (अब पाकिस्तान में) की चूना मंडी में हुआ था। श्री गुरू रामदासजी सिखों के चौथे गुरु थे। उनका पहला नाम जेठा था। और छोटी उम्र में ही आपके माता-पिता का स्‍वर्गवास हो गया। इसके बाद बालक जेठा अपने नाना-नानी के पास बासरके गांव में आकर रहने लगे। 


विवाह

कुछ सत्‍संगी लोगों के साथ बचपन में ही आपने गुरु अमरदासजी के दर्शन किए और आप उनकी सेवा में पहुंचे। और एक दिन माता मनसा देवी जोकि गुरू अमरदास जी के महल थें उनके आग्रह करने पर कि उनकी बेटी विवाह योग्य हो गई है इसलिए उसका विवाह कर दिया जाए। तब गुरू जी ने उनसे पूछा कि आपको कैसा वर पसंद है इसपर उन्होने भाई जेठा जी जैसा वर की कामना की। इस पर गुरू अमरदास जी ने आपका विवाह बीबी भाणी जी के साथ कर दिया। आपका विवाह होने के बाद आप गुरु अमरदासजी की सेवा जमाई बनकर न करते हुए एक सिख की तरह तन-मन से करते रहे।

गुरू रामदास जी का महत्व

एक दिन जब आपके कुछ संबधी मित्र आपसे मिलने आए तब उससमय बाउली साहिब की सेवा चल रही थी और आप भी सेवा कर रहे थें तो आपकों देखकर उन्होने व्यंगय किया कि गुरू अमरदास जी ने आपके जमाई को ही सेवक बनाया हुआ हैं। लेकिन गुरू अमरदास जी ने कहा कि जिसे तुम सेवक कह रहे हों अगर यह आज न होता तो तुम्हारी जाति डूब जानी थी; और हमने इसे बहुत उंची अवस्था देनी हैं। 

गुरू अमरदास जी द्गारा परीक्षा

गुरू अमरदास जी ने एक बार अपने दोनों जमाइयों को 'थडा' बनाने का हुक्‍म दिया। शाम को वे उन दोनों जमाइयों द्वारा बनाए गए थडों को देखने आए। थडे देखकर उन्होंने कहा कि ये ठीक से नहीं बने हैं, इन्‍हें तोड़कर दोबारा बनाओ।

गुरु अमरदासजी का आदेश पाकर दोनों जमाइयों ने दोबारा थडे बनाए। गुरु साहेब ने दोबारा थडों को नापसंद कर दिया और उन्‍हें दुबारा से थडे बनाने का हुक्‍म दिया। इस हुक्‍म को पाकर दुबारा थडे बनाए गए। पर अब जब गुरु अमरदास साहेबजी ने इन्‍हें फिर से नापसंद किया और फिर से बनाने का आदेश दिया, तब उनके बड़े जमाई ने कहा- 'गुरू जी मैं इससे अच्छा थडा नहीं बना सकता'। पर भाई जेठाजी ने गुरु अमरदासजी का हुक्‍म मानते हुए कहा कि गुरू जी आप हमें माफ कर दों। मुझसे गलती हो गई व दोबारा थडा बनाना शुरू किया।उनकी विन्रमता से यह सिद्ध हो गया कि भाई जेठाजी ही गुरुगद्दी के लायक हैं।

गुरूदागदृी व बाणी रचना

भाई जेठाजी (गुरु रामदास जी) को 1 सितंबर सन् 1574 ईस्‍वी में गोविंदवाल जिला अमृतसर में श्री गुरु अमरदासजी द्वारा गुरुगद्दी सौंपी गई। गुरू रामदास जी ने आनंद-कारज' के समय चार 'लावां' की रचना की। इनमें आत्मा-परमात्मा के मिलन का वर्णन किया गया है। अब ये चार 'लावां' सिखों में विवाह के समय एक-एक फेरे के साथ एक-एक पढ़ी जाती है। उनके 640 सबद-सलोक गुरु ग्रंथ साहिब में भी दर्ज हैं।आप जी ने 30 रागों में वाणी की रचना की जिनमें पिछले गुर साहिबान की बाणी से कई नए राग भी थे और विशेष कर आप जी ने छंद भी रचे। 

अमृतसर की स्थापना

 गुरुजी की योग्यता के कारण ही पहले गुरु अमरदास जी ने उन्हें गोइंदवाल साहिब में 'बावली' (कुएं) के निर्माण का कार्य सौंपा, जो 1559 ई. में संपूर्ण हुआ। इसके बाद उन्होंने 1564 ई. में गुरु की आज्ञा लेकर 'अमृतसर' का निर्माण आरंभ कराया। पहले इस स्थान का नाम 'गुरु का चक्क' रखा गया। 1573 ई. में यहां 'अमृत सरोवर' का निर्माण आरंभ हुआ, जिसे 1586 ई. में गुरु अर्जन देव जी ने पूर्ण कराया। अमिृत अर्थात जो न मृत और सर—केद्र जो अमित का केद्र सोमा। पहले इस नगर को रामदासर भी कहते थें। 

गुरू रामदास जी के समय में ही गुरू घर में धन से सेवा करने की अनुमति मिली थी।



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