Shahid Bhai Taru Singh Ji


वैसे तो हर रोज किसी—न किसी का शहीदी दिवस होता हैं। लेकिन बहुत ही कम होते है जो अपने धर्म—देश के लिए कई यताना सहन करके भी अपने—आप को नही बदलतेंं। आज भाई तारू सिंह जी का शहीदी दिवस है जिन्होने अपने धर्म को बचाने के लिए अपने सिर के मास को उतारना स्वीकार कर लिया; लेकिन अपना धर्म तोड़ने के लिए बाल कटवाने स्वीकार नही किए। 

जीवन



भाई तारू सिंह , (6 अक्टूबर 1720 [1] - 1 जुलाई 1745), पंजाब के अमृतसर जिले के पूहला गांव के शहीद भाई जोध सिंह और संधू जाट परिवार की बीबी धरम कौर के बेटे थें। उनकी एक छोटी बहन थी जिसका नाम बीबी तर कौर था। वह एक सच्चे गुरूमुख थे, जिन्होंने सिख गुरुओं की शिक्षाओं का पालन करते हुए , अपनी भूमि को परिश्रम से जोतने के लिए कड़ी मेहनत की और मितव्ययी जीवन व्यतीत किया; हालांकि वह एक अमीर नहीं थेंं, वह हमेशा गुरूबाणी के सिद्धातों को पालन करने के कारण खुश रहते थें। भाई तारू सिंह अपने धर्म के प्रति इतने ईमानदार थे कि रोजाना सुबह 21 बार जपुजी साहिब का पाठ करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते थे
उन्हे जो कुछ भी अपनी अजीविका से मिलता था उसे वह अपने सिख भाईओंं की सेवा में लगा देते थें और सरकार से बचकर उनकी मदद करते थें।


मुगल साम्राज्य के शासनकाल के दौरान पंजाब में जन्मे , भाई तारू सिंह को उनकी विधवा मां, बीबी धरम कौर ने अपने पिता के रूप में एक सिख के रूप में पाला था, भाई जोध सिंह युद्ध में मारे गए थे। इस समय के दौरान, सिख क्रांतिकारी खान को उखाड़ फेंकने की साजिश रच रहे थे और उन्होंने जंगल में शरण ली थी। भाई तारू सिंह और उनकी बहन, तार कौर (तारो) कौर ने इन सिख सेनानियों को भोजन और अन्य सहायता दी।
एक बार की बात है कि अपने इसी स्वभाव के कारण उन्होंने एक रहीम बख्स नाम के मछुआरे की मदद की। पहले विश्राम की जगह ढूँढते हुए भाई साहिब के पास आए रहीम बख्स को भाई साहिब ने विश्राम करवाया और फिर रात का भोजन। रहीम ने इसी दौरान तारू सिंह से अपना दुख साझा किया और कहा कि पट्टे जिले से कुछ मुगल उनकी बेटी को अगवा कर ले गए है इसलिए वह नजर चुराते घूम रहे है। रहीम ने कहा कि उसने इस बारे में कई लोगों से शिकायत की है। लेकिन कहीं उसकी सुनवाई नहीं हुई।

रहीम बख्स की सारी बातें सुनकर भाई साहिब मुस्कुरा दिए और कहा गुरु के दरबार में तुम्हारी पुकार पहुँच गई है। अब तुम्हें बेटी मिल जाएगी। रहीम के वहाँ से जाने के बाद भाई तारू सिंह ने ये बात सिंखों के गुट को बताई और उस गुट के सभी सिखों ने मिलकर रहीम की बेटी को छुड़वा लिया।

रहीम की बेटी की रिहाई पर तारू सिंह बहुत खुश थे। लेकिन लाहौर का गवर्नर जकारिया खान इस खबर को सुनकर भीतर ही भीतर झुलस चुका था। दरअसल, एक ओर तो वो लोगों को इस्लाम कबूल करवाकर मुस्लिम बनाना चाह रहा था और दूसरी ओर मुस्लिमों को सिखों के एक गुट ने मार दिया। ये बात उसे किसी कीमत पर गँवारा नहीं थी। उसने तारू सिंह को अपने पास गिरफ्तार करके लाने को कहा।
लाहौर का गर्वनर जकरिया खान, जो कि काफी क्रुर, और सिख धर्म व उनसे सबंधित सभी सिखों का आलोचक था। वह सिखो को खत्म करना चाहता था। जब अकील दास ने अधिकारियों को दोनों के बारे में जकारिया खान को सूचित किया, जिसके कारण उन दोनों को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
आखिरकार, जब राज्यपाल के सामने पेश किया गया, तो उन्होंने सिख अभिवादन के साथ उनका अभिवादन किया: वाहिगुरु जी का खालसा, वाहिगुरु जी की फतेह। जब देशद्रोह का आरोप लगाया गया, तो उन्होंने कहा:
"यदि हम आपकी भूमि जोतते हैं, तो हम राजस्व का भुगतान करते हैं। यदि हम वाणिज्य में संलग्न हैं, तो हम करों का भुगतान करते हैं। हमारे भुगतान के बाद जो बचा है वह हमारे पेट के लिए है। हम अपने मुंह से जो बचाते हैं, हम अपने भाइयों को देते हैं। हम लेते हैं तुम से कुछ नहीं। फिर तुम हमें दंड क्यों देते हो?" और उन्हे कैदखाने में बंद कर दिया गया।
कुछ ही समय बाद जकारिया खान परेशान हो गया। उसने तंग आकर उन्हें सजा देने का फैसला किया। लेकिन जब प्रताड़नाएँ झेल कर भी भाई तारू सिंह ने उफ्फ नहीं किया तो उनके केश काटने का फैसला हुआ। लेकिन सवाल ये था कि केश काटता कौन? क्योंकि कोई नाई उनके बाल काटने की हिम्मत न जुटा सका।
इसे देखते हुए जकारिया खान ने एक नई जुगत लगाई। उसने चालाकी दिखाते हुए भाई तारू सिंह से कहा, “मैंने सुना है कि आपके गुरु और गुरु के सिक्खों से अगर कुछ माँगा जाए तो वो जरूर मिलता है। मैं भी आपसे एक चीज की माँग करता हूँ, मुझे आपके केश चाहिए।” भाई तारू सिंह ने इस बात को सुनकर दो टूक जवाब दिया, “केश दूँगा, जरूर दूँगा लेकिन काट कर नहीं, खोपड़ी सहित दूँगा।”
इसके बाद जल्लाद को बुलवाकर उनकी खोपड़ी काटनी शुरू हुई और इस अत्याचार को अपनी जीत समझकर जकारिया खान बहुत खुश हुआ। जिसे देख भाई तारू सिंह जी के मुख से सहज ही निकल गया, “ज्यादा खुश मत हो जकारिया खान, मैं तुम्हें जूतियाँ मारते हुए नरक में पहले भेजूँगा और खुद दरगाह बाद में जाऊँगा।”
इसके बाद उनकी खोपड़ी उतार ली गई। कहते हैं कि जब तारू सिंह पर यह दर्दनाक प्रहार किया जा रहा था तब भी वे चुप थे और मन ही मन गुरु नानक देवजी द्वारा रचा गया ‘जपुजी साहिब’ का पाठ कर रहे थे।
लेकिन कुछ दिनोंं बाद जकरिया खान को भी एक गंभीर बीमारी हो गई। और उसे पेशाब आना बंद हो गया। उसने काफी इलाज करवाए मगर असफल रहा। और अंत में उसने भाई तारू सिंह जी को ही विनती की कि वह इससे उन्हे निजात करवाए। संपूर्ण खालसे के निर्णय के बाद तारू सिंह जी की जूती से उनके सिर पर वार किया गया तो उसका पेशाब वापिस आना शुरू हुआ। भार्ई तारू सिंह जी के खोपड़ी उतारने के 21 दिन बाद जकरिया की भी दर्दनाक मौत हो गई। और अगले दिन ही भाई साहिब जीे ने भी शरीर छोड़ दिया। लेकिन धर्म नही छोड़ा। केश नही छोड़ें।
गुरू गोंबिंद सिंह जी के दरबार (दरगाह) में दो सेवक पहरा दे रहे है प्रथम भाई मनी सिंह जी, व दुसरे भाई तारू सिंह जी।

Comments

Popular posts from this blog

Shahidi Saka(Chote Sahibzade) With Poem of Kavi Allah Yar khan Jogi

Shri Guru Angad Dev JI

बाबा श्री चंद जी श्री गुरू नानक देव जी के प्रथम साहिबजादें